20-03-04   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

“इस वर्ष को विशेष जीवनमुक्त वर्ष के रूप में मनाओ, एकता और एकाग्रता से बाप की प्रत्यक्षता करो”

आज स्नेह के सागर चारों ओर के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। बाप का भी बच्चों से दिल का अविनाशी स्नेह है और बच्चों का भी दिलाराम बाप से दिल का स्नेह है। यह परमात्म स्नेह, दिल का स्नेह सिर्फ बाप और ब्राह्मण बच्चे ही जानते हैं। परमात्म स्नेह के पात्र सिर्फ आप ब्राह्मण आत्मायें हो। भक्त आत्मायें परमात्म प्यार के लिए प्यासी हैं, पुकारती हैं। आप भाग्यवान ब्राह्मण आत्मायें उस प्यार की प्राप्ति के पात्र हो। बापदादा जानते हैं कि बच्चों का विशेष प्यार क्यों हैं, क्योंकि इस समय ही सर्व खज़ानों के मालिक द्वारा सर्व खज़ाने प्राप्त होते हैं। जो खज़ाने सिर्फ अब का एक जन्म नहीं चलते लेकिन अनेक जन्मों तक यह अविनाशी खज़ाने आपके साथ चलते हैं। आप सभी ब्राह्मण आत्मायें दुनिया के मुआफिक हाथ खाली नहीं जायेंगे, सर्व खज़ाने साथ रहेंगे। तो ऐसे अविनाशी खज़ानों की प्राप्ति का नशा रहता है ना! और सभी बच्चों ने अविनाशी खज़ाने जमा किये हैं ना! जमा का नशा, जमा की खुशी भी सदा रहती है। हर एक के चेहरे पर खज़ानों के जमा की झलक नजर आती है। जानते हो ना - कौन से खज़ाने बाप द्वारा प्राप्त हैं? कभी अपने जमा का खाता चेक करते हो? बाप तो सभी बच्चों को हर एक खज़ाना अखुट देते हैं। किसको थोड़ा, किसको ज्यादा नहीं देते हैं। हर एक बच्चा अखुट, अखण्ड, अविनाशी खज़ानों के मालिक हैं। बालक बनना अर्थात् खज़ानों का मालिक बनना। तो इमर्ज करो कितने खज़ाने बापदादा ने दिये हैं।

सबसे पहला खज़ाना है - ज्ञान धन, तो सभी को ज्ञान धन मिला है? मिला है या मिलना है? अच्छा - जमा भी है? या थोड़ा जमा है थोड़ा चला गया है? ज्ञान धन अर्थात् समझदार बन, त्रिकालदर्शी बन कर्म करना। नॉलेजफुल बनना। फुल नॉलेज और तीनों कालों की नॉलेज को समझ ज्ञान धन को कार्य में लगाना। इस ज्ञान के खज़ाने से प्रत्यक्ष जीवन में, हर कार्य में यूज करने से विधि से सिद्धि मिलती है - जो कई बंधनों से मुक्ति और जीवनमुक्ति मिलती है। अनुभव करते हो? ऐसे नहीं कि सतयुग में जीवनमुक्ति मिलेगी, अभी भी इस संगम के जीवन में भी अनेक हद के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। जीवन, बंधन मुक्त बन जाती है। जानते हो ना, कितने बन्धनों से फ्री हो गये हो! कितने प्रकार के हाय-हाय से मुक्त हो गये हो! और सदा हाय-हाय खत्म, वाह! वाह! के गीत गाते रहते हो। अगर कोई भी बात में जरा भी मुख से नहीं लेकिन संकल्प मात्र भी, स्वप्न मात्र भी हाय.. मन में आती है तो जीवन-मुक्त नहीं। वाह! वाह! वाह! ऐसे है? मातायें, हाय-हाय तो नहीं करती? नहीं? कभी-कभी करती हैं? पाण्डव करते हैं? मुख से भले नहीं करो लेकिन मन में संकल्प मात्र भी अगर किसी भी बात में हाय है तो फ्लाय नहीं। हाय अर्थात् बंधन और फ्लाय, उड़ती कला अर्थात् जीवन-मुक्त, बंधन-मुक्त। तो चेक करो क्योंकि ब्राह्मण आत्मायें जब तक स्वयं बन्धन मुक्त नहीं हुए हैं, कोई भी सोने की, हीरे की रॉयल बंधन की रस्सी बंधी हुई है तो सर्व आत्माओं के लिए मुक्ति का गेट खुल नहीं सकता। आपके बंधन-मुक्त बनने से सर्व आत्माओं के लिए मुक्ति का गेट खुलेगा। तो गेट खोलने की वा सर्व आत्माओं के दु:ख, अशान्ति से मुक्त होने की जिम्मेवारी आपके ऊपर है।

तो चेक करो - अपनी जिम्मेवारी कहाँ तक निभाई है? आप सबने बापदादा के साथ विश्व परिवर्तन का कार्य करने का ठेका उठाया है। ठेकेदार हो, जिम्मेवार हो। अगर बाप चाहे तो सब कुछ कर सकता है लेकिन बाप का बच्चों से प्यार है, अकेला नहीं करने चाहते, आप सर्व बच्चों को अवतरित होते ही साथ में अवतरित किया है। शिवरात्रि मनाई थी ना! तो किसकी मनाई? सिर्फ बाप-दादा की? आप सबकी भी तो मनाई ना! बाप के आदि से अन्त तक के साथी हो। यह नशा है - आदि से अन्त तक साथी हैं? भग-वान के साथी हो।

तो बापदादा अभी इस वर्ष की सीजन के अन्त के पार्ट बजाने में यही सब बच्चों से चाहते हैं, बतायें क्या चाहते हैं? करना पड़ेगा। सिर्फ सुनना नहीं पड़ेगा, करना ही होगा। ठीक है टीचर्स? टीचर्स हाथ उठाओ। टीचर्स पंखें भी हिला रही हैं, गर्मी लगती है। अच्छा, सभी टीचर्स करेंगी और करायेंगी? करायेंगी, करेंगी? अच्छा। हवा भी लग रही है, हाथ भी हिला रहे हैं। सीन अच्छी लगती है। बहुत अच्छा। तो बापदादा इस सीजन के समाप्ति समारोह में एक नये प्रकार की दीपमाला मनाने चाहते हैं। समझा! नये प्रकार की दीपमाला मनाने चाहते हैं। तो आप सभी दीपमाला मनाने के लिए तैयार हैं? जो तैयार हैं वह हाथ उठाओ। ऐसे ही हाँ नहीं करना। बापदादा को खुश करने के लिए हाथ नहीं उठाना, दिल से उठाना। अच्छा। बापदादा अपने दिल की आशाओं को सम्पन्न करने के दीप जगे हुए देखने चाहते हैं। तो बापदादा के आशाओं के दीपकों की दीपमाला मनाने चाहते हैं। समझा, कौन सी दीपावली? स्पष्ट हुआ?

तो बापदादा के आशाओं के दीपक क्या हैं? अगले वर्ष से लेकर, यह वर्ष भी सीजन का पूरा हो गया। बापदादा ने कहा था - आप सबने भी संकल्प किया था, याद है? कोई ने वह संकल्प सिर्फ संकल्प तक पूरा किया है, कोई ने संकल्प को आधा पूरा किया है और कोई सोचते हैं लेकिन सोच, सोचने तक है। वह संकल्प क्या? कोई नई बात नहीं है, पुरानी बात है - स्व-परिवर्तन से सर्व परिवर्तन। विश्व की तो बात छोड़ो लेकिन बापदादा स्व-परिवर्तन से ब्राह्मण परिवार परिवर्तन, यह देखने चाहते हैं। अभी यह नहीं सुनने चाहते कि ऐसे हो तो यह हो। यह बदले तो मैं बदलूं, यह करे तो मैं करूं... इसमें विशेष हर एक बच्चे को ब्रह्मा बाप विशेष कह रहा है कि मेरे समान हे अर्जुन बनो। इसमें पहले मैं, पहले यह नहीं, पहले मैं। यह ``मैं'' कल्याणकारी मैं है। बाकी हद की मैं, मैं नीचे गिराने वाली है। इसमें जो कहावत है - जो ओटे सो अर्जुन, तो अर्जुन अर्थात् नम्बरवन। नम्बरवार नहीं, नम्बरवन। तो आप नम्बर दो बनने चाहते हो या नम्बरवन बनने चाहते हो? कई कार्य में बापदादा ने देखा है - हँसी की बात, परिवार की बात सुनाते हैं। परिवार बैठा है ना! कोई ऐसे काम होते हैं तो बापदादा के पास समाचार आते हैं, तो कई कार्य ऐसे होते हैं, कई प्रोग्राम्स ऐसे होते हैं जो विशेष आत्माओं के निमित्त होते हैं। तो बापदादा के पास दादियों के पास समाचार आते हैं, क्योंकि साकार में तो दादियां हैं। बापदादा के पास तो संकल्प पहुंचते हैं। तो क्या संकल्प पहुंचता है? मेरा भी नाम इसमें होना चाहिए, मैं क्या कम हूँ! मेरा नाम क्यों नहीं! तो बाप कहते हैं - हे अर्जुन में आपका नाम क्यों नहीं! होना चाहिए ना! या नहीं होना चाहिए? होना चाहिए? सामने महारथी बैठे हैं, होना चाहिए ना! होना चाहिए? तो ब्रह्मा बाप ने जो करके दिखाया, किसको देखा नहीं, यह नहीं करते, यूं नहीं करते, नहीं। पहले मैं। इस मैं में जो पहले सुनाया था अनेक प्रकार के रॉयल रूप के मैं, सुनाया था ना! वह सब समाप्त हो जाते हैं। तो बापदादा की आशायें इस सीजन के समाप्ति की यही हैं कि हर एक बच्चा जो ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी कहलाते हैं, मानते हैं, जानते हैं, वह हर एक ब्राह्मण आत्मा जो भी संकल्प रूप में भी हद के बन्धन हैं, उस बंधनों से मुक्त हो। ब्रह्मा बाप समान बन्धनमुक्त, जीवन-मुक्त। ब्राह्मण जीवन मुक्त, साधारण जीवन मुक्त नहीं, ब्राह्मण श्रेष्ठ जीवनमुक्त का यह विशेष वर्ष मनायें। हर एक आत्मा जितना अपने सूक्ष्म बंधनों को जानते हैं, उतना और नहीं जान सकता है। बापदादा तो जानते हैं क्योंकि बापदादा के पास तो टी.वी. है, मन की टी.वी., बॉडी की नहीं, मन की टी.वी. है। तो क्या अभी जो फिर से सीजन होगी, सीजन तो होगी ना या छुट्टी करें? एक वर्ष छुट्टी करें? नहीं? एक साल तो छुट्टी होनी चाहिए? नहीं होनी चाहिए? पाण्डव एक साल छुट्टी करें? (दादी जी कह रही हैं, मास में 15 दिन की छुट्टी) अच्छा। बहुत अच्छा, सभी कहते हैं, जो कहते हैं छुट्टी नहीं करनी है वह हाथ उठाओ। नहीं करनी है? अच्छा। ऊपर की गैलरी वाले हाथ नहीं हिला रहे हैं। (सारी सभा ने हाथ हिलाया) बहुत अच्छा। बाप तो सदा बच्चों को हाँ जी, हाँ जी करते हैं, ठीक है। अभी बाप को बच्चे कब हाँ जी करेंगे! बाप से तो हाँ जी करा ली, तो बाप कहते हैं, बाप भी अभी एक शर्त डालते हैं, शर्त मंजूर होगी? सभी हाँ जी तो करो। पक्का? थोड़ा भी आनाकानी नहीं करेंगे? अभी सबकी शक्लें टी.वी. में निकालो। अच्छा है। बाप को भी खुशी होती है कि सभी बच्चे हाँ जी, हाँ जी करने वाले हैं।

तो बापदादा यही चाहते हैं कि कोई कारण नहीं बताये, यह कारण है, यह कारण है, इसलिए यह बंधन है! समस्या नहीं, समाधान स्वरूप बनना है और साथियों को भी बनाना है क्योंकि समय की हालत को देख रहे हो। भ्रष्टाचार का बोल कितना बढ़ रहा है। भ्रष्टाचार, अत्याचार अति में जा रहा है। तो श्रेष्ठाचार का झण्डा पहले हर ब्राह्मण आत्मा के मन में लहराये, तब विश्व में लह-रेगा। कितनी शिवरात्रि मना ली! हर शिवरात्रि पर यही संकल्प करते हो कि विश्व में बाप का झण्डा लहराना है। विश्व में यह प्रत्य-क्षता का झण्डा लहराने के पहले हर एक ब्राह्मण को अपने मन में सदा दिल-तख्त पर बाप का झण्डा लहराना होगा। इस झण्डे को लहराने के लिए सिर्फ दो शब्द हर कर्म में लाना पड़ेगा। कर्म में लाना, संकल्प में नहीं, दिमाग में नहीं। दिल में, कर्म में, सम्बन्ध में, सम्पर्क में लाना होगा। मुश्किल शब्द नहीं है कॉमन शब्द है। वह है-एक सर्व सम्बन्ध, सम्पर्क में आपस में एकता। अनेक संस्कार होते, अनेकता में एकता। और दूसरा - जो भी श्रेष्ठ संकल्प करते हो, बापदादा को बहुत अच्छा लगता है, जब आप संकल्प करते हो ना, तो बापदादा वह संकल्प देखकर, सुनकर बहुत खुश होते हैं, वाह! वाह! बच्चे वाह! वाह! श्रेष्ठ संकल्प वाह! लेकिन, लेकिन... आ जाता है। आना नहीं चाहिए लेकिन आ जाता है। संकल्प मैजारिटी, मैजारिटी अर्थात् 90 परसेन्ट, कई बच्चों के बहुत अच्छे-अच्छे होते हैं। बापदादा समझते हैं आज इस बच्चे का संकल्प बहुत अच्छा है, प्रोग्रेस हो जायेगी लेकिन बोल में थोड़ा आधा कम हो जाता, कर्म में फिर पौना कम हो जाता, मिक्स हो जाता है। कारण क्या? संकल्प में एकाग्रता, दृढ़ता नहीं। अगर संकल्प में एकाग्रता होती तो एकाग्रता सफलता का साधन है। दृढ़ता सफलता का साधन है। उसमें फर्क पड़ जाता है। कारण क्या? एक ही बात बापदादा देखते हैं रिजल्ट में, दूसरे के तरफ ज्यादा देखते हैं। आप लोग बताते हो ना, (बापदादा ने एक अंगुली आगे करके दिखाई) ऐसे करते हैं, तो एक अंगुली दूसरे तरफ, चार अपने तरफ हैं। तो चार को नहीं देखते, एक को बहुत देखते हैं। इसीलिए दृढ़ता और एकाग्रता, एकता हिल जाती है। यह करे, तो मैं करूं, इसमें ओटे अर्जुन बन जाते, उसमें दूजा नम्बर बन जाते हैं। नहीं तो स्लोगन अपना बदली करो। स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के बजाए करो - विश्व परिवर्तन से स्व परिवर्तन। दूजे परिवर्तन से स्व परिवर्तन। बदली करें? बदली करें? नहीं करें? तो फिर बापदादा भी एक शर्त डालता है, मंजूर है, बतायें? बाप-दादा 6 मास में रिजल्ट देखेंगे, फिर आयेंगे, नहीं तो नहीं आयेंगे। जब बाप ने हाँ जी किया, तो बच्चों को भी हाँ जी करना चाहिए ना! कुछ भी हो जाए, बापदादा तो कहता है, स्व परिवर्तन के लिए इस हद के मैं पन से मरना पड़ेगा, मैं पन से मरना, शरीर से नहीं मरना। शरीर से नहीं मरना, मैं पन से मरना है। मैं राइट हूँ, मैं यह हूँ, मैं क्या कम हूँ, मैं भी सब कुछ हूँ, इस मैं पन से मरना है। तो मरना भी पड़े तो यह मृत्यु बहुत मीठा मृत्यु है। यह मरना नहीं है, 21 जन्म राज्य भाग्य में जीना है। तो मंजूर है? मंजूर है टीचर्स? डबल फारेनर्स? डबल फारेनर्स जो संकल्प करते हैं ना, वह करने में हिम्मत रखते हैं, यह विशेषता है। और भारतवासी ट्रिपल हिम्मत वाले हैं, वह डबल तो वह ट्रिपल। तो बापदादा यही देखने चाहते हैं। समझा! यही बापदादा की श्रेष्ठ आशाओं का दीपक, हर बच्चे के अन्दर जगा हुआ देखने चाहते हैं। अभी इस बारी यह दीवाली मनाओ। चाहे 6 मास के बाद मनाओ। फिर जब बापदादा दीपावली का समारोह देखेंगे फिर अपना प्रोग्राम देंगे। करना तो है ही। आप नहीं करेंगे तो और पीछे वाले करेंगे क्या! माला तो आपकी है ना! 16108 में तो आप पुराने ही आने हैं ना। नये तो पीछे-पीछे आयेंगे। हाँ कोई-कोई लास्ट सो फास्ट आयेंगे। कोई-कोई मिसाल होंगे जो लास्ट सो फास्ट जायेंगे, फर्स्ट आयेंगे। लेकिन थोड़े। बाकी तो आप ही हैं, आप ही हर कल्प बने हो, आप ही बनने हैं। चाहे कहाँ भी बैठे हैं, विदेश में बैठे हैं, देश में बैठे हैं लेकिन जो आप पक्के निश्चय बुद्धि बहुतकाल के हैं, वह अधिकारी हैं ही हैं। बापदादा का प्यार है ना, तो जो बहुतकाल वाले अच्छे पुरूषार्थी, सम्पूर्ण पुरूषार्थी नहीं, लेकिन अच्छे पुरूषार्थी रहे हैं उनको बापदादा छोड़ के जायेगा नहीं, साथ ही ले चलेगा। इसीलिए पक्का, निश्चय करो हम ही थे, हम ही हैं, हम ही साथ रहेंगे। ठीक है ना! पक्का है ना? बस सिर्फ शुभचिंतक, शुभचिंतन, शुभ भावना, परिवर्तन की भावना, सहयोग देने की भावना, रहम दिल की भावना इमर्ज करो। अभी मर्ज करके रखी है। इमर्ज करो। शिक्षा बहुत नहीं दो, क्षमा करो। एक दो को शिक्षा देने में सब होशियार हैं लेकिन क्षमा के साथ शिक्षा दो। मुरली सुनाने, कोर्स कराने या जो भी आप प्रोग्राम्स चलाते हो, उसमें भले शिक्षा दो, लेकिन आपस में जब कारोबार में आते हो तो क्षमा के साथ शिक्षा दो। सिर्फ शिक्षा नहीं दो, रहमदिल बनके शिक्षा दो तो आपका रहम ऐसा काम करेगा जो दूसरे की कमज़ोरी की क्षमा हो जायेगी। समझा।

बाकी सेवायें तो सभी ने बहुत प्रकार की की हैं और अभी कर भी रहे हैं लेकिन बापदादा एक इशारा देते हैं कि क्वान्टिटी और क्वालिटी, क्वान्टिटी की भी सेवा करो लेकिन क्वान्टिटी को सेवा के सहयोगी बनाओ। क्वालिटी वालों को सामने लाओ, सेवा की स्टेज पर लाओ। क्वालिटी और क्वान्टिटी दोनों की सेवा साथ-साथ हो। ऐसे नहीं क्वान्टिटी के पीछे क्वालिटी रह जाये क्योंकि समय समीप आ रहा है। बाप की प्रत्यक्षता तब होगी जब क्वालिटी वाले कार्य को और बाप को प्रत्यक्ष करें। सन्देश देना वह भी जरूरी है लेकिन सन्देश वाहक बनाना वह भी आवश्यक है। अभी भी भिन्न-भिन्न वर्ग वाले आये हैं। बापदादा ने सुना, जो भी भिन्न-भिन्न वर्ग वाले आये हैं वह एक एक हाथ उठाओ।

(स्पोर्ट, एडमिनिस्टेटर, यूथ, आई. टी. ग्रुप, सभी वर्ग वालों से बापदादा ने हाथ उठवाये) जो भी वर्ग वाले आये हैं, मीटिंग तो की लेकिन बापदादा को हर वर्ग ने अपना सेवा में नम्बरवन आई.पी. सामने नहीं दिखाया है। कौन से वर्ग का कोई माइक तैयार हुआ है, बताओ। हर एक वर्ग का कोई ऐसा माइक तैयार किया है जो आप माइट बनो और वह माइक बनें? किस वर्ग वाले ने किया है? हाथ उठाओ। कौन किया है? अभी जो वर्गो का प्रोग्राम होगा, उसमें हर एक वर्ग अपने छोटे माइक ग्रुप को मधुबन में सामने लावे। यह तो कर सकते हैं ना! बापदादा भी देखे तो सही, कौन से बच्चे तैयार हुए हैं। बाप-दादा के आगे नहीं लाना, पहले दादियों के आगे लाओ। फिर वह पास करेंगे फिर बापदादा के सामने लाना। अच्छा है। अच्छा - सुना तो बहुत है। अभी सुनना अर्थात् समाना। समाना अर्थात् स्वरूप में लाना। अभी 6 लाख ब्राह्मण परिवार एक दो में सदा स्नेही, सहयोगी और सदा हिम्मत बढ़ाने वाले हों। अच्छा।

सेवा का टर्न राजस्थान का है, यू.पी. मददगार है:- अच्छा है ना, राजस्थान को बहुत चांस मिला है - ज्यादा पुण्य जमा करने का। देखो जितनी संख्या बढ़ गई, उतनी आत्माओं का पुण्य सेवाधारियों के खाते में जमा हुआ। तो राजस्थान को बिना संकल्प किये गोल्डन लाटरी पुण्य की मिली है। अच्छा है। राजस्थान को मिली तो सभी खुश हो रहे हैं। अच्छा है सबने अच्छा समय दे करके निभाया। और सेवा में सफलता प्राप्त की, इसकी मुबारक हो। अच्छा। (सभा से, आज सभा में 25 हजार से भी ज्यादा भाई बहिनें पहुंचे हैं) आप सभी ने भी दादियों को, सेवाधारियों को मुबारक दी। इतनी मेहनत कराई है। खूब तालियां बजाओ। अच्छा।

अभी एक सेकेण्ड में मन के मालिक बन मन को जितना समय चाहे उतना समय एकाग्र कर सकते हो? कर सकते हो? तो अभी यह रूहानी एक्सरसाइज करो। बिल्कुल मन की एकाग्रता हो। संकल्प में भी हलचल नहीं। अचल। अच्छा -

चारों ओर के सर्व अविनाशी अखण्ड खज़ानों के मालिक, सदा संगमयुगी श्रेष्ठ बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त स्थिति पर स्थित रहने वाले, सदा बापदादा की आशाओं को सम्पन्न करने वाले, सदा एकता और एकाग्रता के शक्ति सम्पन्न मास्टर सर्व शक्तिवान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

चारों ओर दूर बैठने वाले बच्चों को, जिन्होंने यादप्यार भेजी है, पत्र भेजे हैं, उन्हों को भी बापदादा बहुत-बहुत दिल के प्यार सहित यादप्यार दे रहे हैं। साथ-साथ बहुत बच्चों ने मधुबन की रिफ्रेशमेंट के पत्र बहुत अच्छे-अच्छे भेजे हैं, उन बच्चों को भी विशेष याद-प्यार और नमस्ते।